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Monday, September 2, 2019

कही धूप है,कही ‌‌‌‌छाव हैं.....

कही धूप है कही ‌‌‌‌छाव हैं ,
कभी दर्द मे डूबे पाव हैं ।।
कही उबङ़-खाबड़ रास्ता,
रास्ते में मिल रहे घाव हैं ।

कभी कर रहा आराम में ,
कभी चल रहा थकान में ,
कही वृक्षो की छाव हैं,
कही बादलो की गर्जना ,
कभी सुर्य का अहंकार भी है तोड़ने मुझको जला ,
लेकिन मेरी आग के आगे क्या टिक पाए भला ।।
कही धूप है.........…..।।

कही शहर है ,कही गाँव हैं ,
कभी प्रतिवाद में भी दाँव हैं ।।
कभी बिगड़ता मौसम है,
कभी डोलती मेरी नाव हैं ।

कभी लहरो का क्रोध है,
कभी आस्था की स्नेह लता,
कभी भय है अंधकार का,
कभी चाँद से रोशन घटा ,
अमावस्या अंधकार भी मुझको क्या रोकेगा भला,
है साहस का प्रकाश इतना अंधकार भी है चला।।
कही धूप है ..............।।


Sunday, July 7, 2019

मोबाइल


सुबह को जागकर पहला नमस्कार करता हुँ,
अपने मोबाइल को ,
क्योकि आजकल जगाता भी यही हैं ,
तो रूलाता-हँसाता भी यही हैं ,
बस सुलाती मेरी नींद ही है मुझे ,
नींद भी जब तक नही सुलाएगी ,
जब तक की वह अपनी चरम सीमा को
पार न करदें,
वरना इस मोबाइल के क्या ही कहने
यह सोने ही न दे मुझे ।।

मैं तो रूठता नही मोबाइल से ,
कभी मोबाईल जरूर रूठ जाता हैं ,
कभी बढ़ जाता है तापमान इसका ,
कभी आँखे बंद कर सो जाता हैं ,
तब करता हुँ जतन उसको जगाने के लिए,
और भागता हुँ बिजली की ओर ,
फिर से उसके साथ साथ कुछ गुनगुनाने के लिए ,
कुछ समझने के लिए,कुछ समझाने के लिए ,

किसी से करनी भी हो बात,
मोबाईल से ही कह देता हुँ ।
यही है दुनिया मेरी कुछ जानने,
खोजने मे यही तो एक सहारा हैं ,
कभी आन पडे़ समस्या,मोबाईल ही
की मदद से लगता किनारा हैं,
कुछ समझदार लोग कहते हैं ,
इसने बनाया-बिगाड़ा‌ हैं हमे ,
लेकिन बनाया इसे हमने ही हैं,
अपने फायदे के लिए,
ओर शायद खुद को बिगाड़ा भी,
ये मोबाइल तो बेकसुर बेचारा हैं ..........


Wednesday, May 22, 2019

इश्क की लहर

कही दूर अपने मन-मस्तिष्क को ले जाकर,
सोच रहा था कुछ मैं ।
अभी पहुँचा नही था मंजिल पर,
की मेरी नजरो ने मुझसे किनारा कर लिया ,
और अटक गई एक नूर से चेहरे पर जाकर ।
और एेसी अटकी नजरे मेरी ,
की पलके झपकने की इच्छा न हुई,
इच्छा तो हुई पलके बिछाने की,
उसके इंतजार में की टकते रहूँ उस लम्हे को
जब भी वो आएगी करीब मेरे,
मिलकर कुछ मीठे अल्फाज ही मुझसे कह दे ।
प्यार के नही तो कुछ और ही सही ,
बस इतना हो जाए,
फिर मैं बैचेन हो जाऊंगा उसकी यादो में ।
लेकिन क्या पता उन्हे मेरे जज्बात की कदर होगी या नही,
कदर होगी भी तो कैसै पता चलेगा मुझे ,
मान लिया की वह समझती है मुझे ,
लेकिन क्या इज्हारे इश्क भी कर देगी वह नूर,
क्योकि मुझको तो लगता है डर,
इश्क के संगीत को छेड़ने में ,
इश्क के समुन्दर में तैरने में ,
वैसे तैराक बड़ा अच्छा हूँ मैं ,
अनेको बार लहरो को भी मात दी हैं ,
लेकिन यह इश्क की लहर ही कुछ एसी है,
की डर लगता है कही गुम सा न हो जाऊ इसमें ।
डर लगना भी स्वाभाविक हैं,
क्योकि इस इश्क की लहर का अंदाजा नही हैं मुझे
और जिस किसी ने भी इस इश्क की लहर को,
ब़या किया वह मुझे गुम सा ही लगा,
या साफ शब्दो में कहु तो रोता ही पाया गया ।
कभी इस इश्क की लहर से उजड़ने पर ,
तो कभी इस इश्क की लहर के ठहर जाने पर..................


Sunday, May 12, 2019

माँ

दूर कही अपने संसार मैं ही मस्त हुँ मैं ।
कर्म,व्यथा की कथा सुनाने में व्यस्त हुँ मैं ।
जिसने मिलवाया है इस संसार से मुझे,
उस माँ के लिए ही सुर्य सा अस्त हुँ मैं ।।

राह टकती होगी माँ जानता हुँ,समय के आगे पस्त हुँ मैं।
सांसारिक मोह माया के इस जंजाल से त्रस्त हुँ मैं ।
माँ तेरे करूणा के आँछल की छाया हो साथ बस ,
कठिनाईयो,कष्टो,पराजय के लिए भी कष्ट हुँ मैं ।।

कुछ पाने की धुन मैं वक्त की कमी सी हैं ।
वह दुलार, डाँट नही अब,वक्त से ठनी सी हैं।
जब कभी करता हुँ बात माँ तुमसे फोन पर,
लगता हैं बातो में भी आजकल नमी सी हैं।

Friday, April 26, 2019

प्यार भी न देख सकी


तेरे चेहरे के नूर पर कुछ इस तरह फिदा़ हुआ मैं ।
मेरी नजरे अटक गई तुम पर,आँखे भी न थकी ।।
मैने तो तेरी आँखो में अपना संसार देख लिया ।
और तुम मेरी आँखो में प्यार भी न देख सकी ।।

माना की इज्हार लब्जो से नही आँखो से किया ।
लब्जो से निकल सकता है झुठ,आँखो से नही ।।
तुम तो छिपाए बैठी हो अपने दिल के जज्बात को ।
कम से कम मैने इश्क का इज्हार किया तो सही ।।

Saturday, April 13, 2019

"हार को मैं दुखता हुँ "


हारना सीखा नही,फिर भी मैं हार जाता हूँ ।
किस्मत से भी अनेको बार मार खाता हूँ।
फिसलता - गिरता - उठता - संभलता मैं ।
मेहनत का थाम हाथ सपनो संग चलता हूँ ।

पाने को सपने राहो पर बढ़ता जाता हूँ।
डरता हुँ, हार को भी अनेको बार डराता हूँ।
कभी तो चमकूंगा इस ब्रह्माण्ड के पटल पर ।
अंतिरक्ष के वातावरण में छाया सा सन्नाटा हूँ।

कभी देखने को सपने रातो को जागता हूँ।
सपनो को पाने कच्चे रास्ते पर भागता हूँ ।
सपनो को पाना मुझे हार को भी हराना हैं ।
दिन-रात अपने सपनो का राग ही रागता हूँ।

हार को हराने को सबूत मैं पुखता हूँ ।
हार के पहाड़ से न रूकता ,न झुकता हूँ।
यह तो तय है सपनो को जी भी लुंगा एक दिन ।
की हार खुद कहे की हार को मैं दुखता हूँ ।










Thursday, March 21, 2019

इश्क का रंग


रंग बरस रहा है फिजाओ में ,
हम खोए उनकी अदाओ में ।
की आयेगी वो करीब हमारे ,
हम पुष्प बिखेरेंगे उनकी राहो में।

टकते रहे जी भरकर उनको,
हेै रंग गुलाल लगाने को  ।
इंतजार कर रहे थे उनका ,
उन्हे रंगो से सजाने को ।

इतने में ही एक इन्तेहा हो गई ,
वह खुद ही मेरे करीब आ गई ।
हाथो में लिये हुए इश्क का रंग ,
फिर से वह मेरे दिल को भा गई ।।

एक सुनहरा स्पर्श हुआ गालो पर ,
मिल गई है अब नजरो से नजर ।
हे हो गई धड़कन तेज मेरी ,
लगता है दिल पर हुआ असर ।।

सोचा था हम उनके करीब जाएंगे ,
अपना हाथ उनके हाथो में थमाएंगे ।
स्पर्श करेंगे उनके मखमली गालो का ,
और फिर उनकी यादो में खो जाएंगे ।।

जैसा सोचा था वैसा हुआ नही ,
जो हो रहा वह है बहुत सही ।
वो देखकर मुझको मुस्कुराई ,
और पुछ बैठी क्या खो गए कही ।।

क्या कहु की डुबा था तुम्हारे खयालो में ,
साथ चलना तुम्हारे,जीवन की इन राहो में ।
लेकिन कुछ न निकला जुबा से मेरे ,
उलझ कर रह गया अपने ही सवालो में ।।

काश तुम खुद ही मेरे जज्बात को समझ लों ,
मैं सुनता हु रोज तुम भी मेरी धड़कन को सुन लो ।
और कर ही दो इज्हारे इश्क रंग लगाने के बहाने.........









Sunday, March 3, 2019

समय


समय, एक पुकार है ,
कुछ नया करने की हुँकार हैं ।
समय, निस्तब्द्ध्ता त्यागने का संदेश है ।
लक्ष्य प्राप्ति में लग जाने का संकेत है ।

समय, अविरल ज्ञान है ।
इसमें छिपा सर्व विज्ञान है ।
व्याकुल पथिक का पथ है ।
भुत ,भविष्य से सजा रथ है ।

समय, असफलता की व्यथा हैं।
सफलता के मार्ग की कथा हैं ।
समय निश्लता का प्रतिक हैं ‌।
समय संग लक्ष्य सटीक हैं ।


Friday, February 1, 2019

मंजिल

है दुर खड़ा , है सुदूर खड़ा ।
मंजिल के सपने देखु मैं ।
आखो में जज्बा लिए हुए ।
मंजिल को करीब देखु मैं ।।

है पार करू मैं पहाड़ बड़ा ।
मंजिल को पाने की जिद में ।
सपनो की गठरी लिए हुए ।
उस पथ पर चल रहा हुँ मैं ।।

हे सीख रहा,डर से भी लड़ा ।
मेहनत करने तैयार हुँ मैं ।
कई हार,निराशा लिए हुए ।
हर पल कर रहा प्रहार हुँ मैं ।।

मंजिल की राह में उलझ पड़ा ।
हे राह को सुलझा रहा हुँ मैं ।
है सीख राह की लिए हुए ।
करता जा रहा प्रयास हुँ मैं ।।

मंजिल को पाने को मैं अड़ा ।
आगे ही बड़ रहा हुँ मैं ।
अनेक इच्छाए लिए हुए ।
राह पर निकल पड़ा हुँ मैं ।।




Friday, January 4, 2019

चित्रकार


एक नया संसार रचने ।
चला है व्याकुल एक मुसाफिर ।।
अस्त्र लिए तैयार अपने ।
संजाने को नया संसार फिर ।।
कुछ देखा सा ,कुछ है सपने ।
कुछ लिए अपनी कल्पना के नीर ।।
अपने संसार को संवारने ।
पग में है तेजी, मन में है धीर ।।
उड़ता जा रहा संसार को रंगने ।
मानो बहता हुआ समीर ।।
चित्र अपने संसार के उकेरने ।
निकला था वह मुसाफ़िर ।।

Thursday, January 3, 2019

नववर्ष

नव वर्ष का मधुर आगमन ।
स्वागत करने उत्साहित मन ।।
नए लक्ष्य है , है कुछ सपने ।
पुर्ण करने का करना जतन ।।
भुल बीती बातो को उन ।
जिसने दुखाया तेरा मन ।।
नया समय,भविष्य नया लिखने ।
सही निर्णय संग बड़ा कदम ।।