उन किरणों को समेटे,जीवन से जो मिली थी ,
ऊंचाइयों को पाने उड़ रहा था मैं ,
उन सपनों के पीछे, बचपन से थे जो सींचे ,
कोई खींच रहा या खुद ही खींचता जा रहा था मैं ||
कहीं मखमली बादल थे, कहीं डराती घटा ,
सबको गले से लगाकर बढ़ रहा था मैं ,
सपनों को लादे हुए, जीवन की इस राह में ,
ऊंचाइयों की डगर खोजता फिर रहा था मैं ||
कच्ची रस्सी के सहारे, पतली सी डगर पर ,
रस्सी टूटे, सपने जाएंगे सारे बिखर ,
उड़ने को तो फिर से मैं तैयार था ,
लेकिन रूखी सी लगने लगी थी ये डगर ||
जीवन जीने को ललचा रहा था मन ,
फिर से उड़ने को फड़फड़ा रहा था मन ,
गिरता आया हूं , गिरने से ना डरा कभी ,
लेकिन ना जाने क्यों अब घबरा रहा था मन ||
थक सा गया, रुक मैं गया हूं ,
ऊंचाइयों मैं कहीं खो गया हूं ,
जिन सपनों का पीछा किया था ,
उन सपनों को लिए सो गया हूं....... ||
ऊंचाइयों को पाने उड़ रहा था मैं ,
उन सपनों के पीछे, बचपन से थे जो सींचे ,
कोई खींच रहा या खुद ही खींचता जा रहा था मैं ||
कहीं मखमली बादल थे, कहीं डराती घटा ,
सबको गले से लगाकर बढ़ रहा था मैं ,
सपनों को लादे हुए, जीवन की इस राह में ,
ऊंचाइयों की डगर खोजता फिर रहा था मैं ||
कच्ची रस्सी के सहारे, पतली सी डगर पर ,
रस्सी टूटे, सपने जाएंगे सारे बिखर ,
उड़ने को तो फिर से मैं तैयार था ,
लेकिन रूखी सी लगने लगी थी ये डगर ||
जीवन जीने को ललचा रहा था मन ,
फिर से उड़ने को फड़फड़ा रहा था मन ,
गिरता आया हूं , गिरने से ना डरा कभी ,
लेकिन ना जाने क्यों अब घबरा रहा था मन ||
थक सा गया, रुक मैं गया हूं ,
ऊंचाइयों मैं कहीं खो गया हूं ,
जिन सपनों का पीछा किया था ,
उन सपनों को लिए सो गया हूं....... ||
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