एक नया संसार रचने ।
चला है व्याकुल एक मुसाफिर ।।
अस्त्र लिए तैयार अपने ।
संजाने को नया संसार फिर ।।
कुछ देखा सा ,कुछ है सपने ।
कुछ लिए अपनी कल्पना के नीर ।।
अपने संसार को संवारने ।
पग में है तेजी, मन में है धीर ।।
उड़ता जा रहा संसार को रंगने ।
मानो बहता हुआ समीर ।।
चित्र अपने संसार के उकेरने ।
निकला था वह मुसाफ़िर ।।
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