है दुर खड़ा , है सुदूर खड़ा ।
मंजिल के सपने देखु मैं ।
आखो में जज्बा लिए हुए ।
मंजिल को करीब देखु मैं ।।
है पार करू मैं पहाड़ बड़ा ।
मंजिल को पाने की जिद में ।
सपनो की गठरी लिए हुए ।
उस पथ पर चल रहा हुँ मैं ।।
हे सीख रहा,डर से भी लड़ा ।
मेहनत करने तैयार हुँ मैं ।
कई हार,निराशा लिए हुए ।
हर पल कर रहा प्रहार हुँ मैं ।।
मंजिल की राह में उलझ पड़ा ।
हे राह को सुलझा रहा हुँ मैं ।
है सीख राह की लिए हुए ।
करता जा रहा प्रयास हुँ मैं ।।
मंजिल को पाने को मैं अड़ा ।
आगे ही बड़ रहा हुँ मैं ।
अनेक इच्छाए लिए हुए ।
राह पर निकल पड़ा हुँ मैं ।।
मंजिल के सपने देखु मैं ।
आखो में जज्बा लिए हुए ।
मंजिल को करीब देखु मैं ।।
है पार करू मैं पहाड़ बड़ा ।
मंजिल को पाने की जिद में ।
सपनो की गठरी लिए हुए ।
उस पथ पर चल रहा हुँ मैं ।।
हे सीख रहा,डर से भी लड़ा ।
मेहनत करने तैयार हुँ मैं ।
कई हार,निराशा लिए हुए ।
हर पल कर रहा प्रहार हुँ मैं ।।
मंजिल की राह में उलझ पड़ा ।
हे राह को सुलझा रहा हुँ मैं ।
है सीख राह की लिए हुए ।
करता जा रहा प्रयास हुँ मैं ।।
मंजिल को पाने को मैं अड़ा ।
आगे ही बड़ रहा हुँ मैं ।
अनेक इच्छाए लिए हुए ।
राह पर निकल पड़ा हुँ मैं ।।
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