हारना सीखा नही,फिर भी मैं हार जाता हूँ ।
किस्मत से भी अनेको बार मार खाता हूँ।
फिसलता - गिरता - उठता - संभलता मैं ।
मेहनत का थाम हाथ सपनो संग चलता हूँ ।
पाने को सपने राहो पर बढ़ता जाता हूँ।
डरता हुँ, हार को भी अनेको बार डराता हूँ।
कभी तो चमकूंगा इस ब्रह्माण्ड के पटल पर ।
अंतिरक्ष के वातावरण में छाया सा सन्नाटा हूँ।
कभी देखने को सपने रातो को जागता हूँ।
सपनो को पाने कच्चे रास्ते पर भागता हूँ ।
सपनो को पाना मुझे हार को भी हराना हैं ।
दिन-रात अपने सपनो का राग ही रागता हूँ।
हार को हराने को सबूत मैं पुखता हूँ ।
हार के पहाड़ से न रूकता ,न झुकता हूँ।
यह तो तय है सपनो को जी भी लुंगा एक दिन ।
की हार खुद कहे की हार को मैं दुखता हूँ ।
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