कही धूप है कही छाव हैं ,
कभी दर्द मे डूबे पाव हैं ।।
कही उबङ़-खाबड़ रास्ता,
रास्ते में मिल रहे घाव हैं ।
कभी कर रहा आराम में ,
कभी चल रहा थकान में ,
कही वृक्षो की छाव हैं,
कही बादलो की गर्जना ,
कभी सुर्य का अहंकार भी है तोड़ने मुझको जला ,
लेकिन मेरी आग के आगे क्या टिक पाए भला ।।
कही धूप है.........…..।।
कही शहर है ,कही गाँव हैं ,
कभी प्रतिवाद में भी दाँव हैं ।।
कभी बिगड़ता मौसम है,
कभी डोलती मेरी नाव हैं ।
कभी लहरो का क्रोध है,
कभी आस्था की स्नेह लता,
कभी भय है अंधकार का,
कभी चाँद से रोशन घटा ,
अमावस्या अंधकार भी मुझको क्या रोकेगा भला,
है साहस का प्रकाश इतना अंधकार भी है चला।।
कही धूप है ..............।।
कभी दर्द मे डूबे पाव हैं ।।
कही उबङ़-खाबड़ रास्ता,
रास्ते में मिल रहे घाव हैं ।
कभी कर रहा आराम में ,
कभी चल रहा थकान में ,
कही वृक्षो की छाव हैं,
कही बादलो की गर्जना ,
कभी सुर्य का अहंकार भी है तोड़ने मुझको जला ,
लेकिन मेरी आग के आगे क्या टिक पाए भला ।।
कही धूप है.........…..।।
कही शहर है ,कही गाँव हैं ,
कभी प्रतिवाद में भी दाँव हैं ।।
कभी बिगड़ता मौसम है,
कभी डोलती मेरी नाव हैं ।
कभी लहरो का क्रोध है,
कभी आस्था की स्नेह लता,
कभी भय है अंधकार का,
कभी चाँद से रोशन घटा ,
अमावस्या अंधकार भी मुझको क्या रोकेगा भला,
है साहस का प्रकाश इतना अंधकार भी है चला।।
कही धूप है ..............।।
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