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Sunday, May 12, 2019

माँ

दूर कही अपने संसार मैं ही मस्त हुँ मैं ।
कर्म,व्यथा की कथा सुनाने में व्यस्त हुँ मैं ।
जिसने मिलवाया है इस संसार से मुझे,
उस माँ के लिए ही सुर्य सा अस्त हुँ मैं ।।

राह टकती होगी माँ जानता हुँ,समय के आगे पस्त हुँ मैं।
सांसारिक मोह माया के इस जंजाल से त्रस्त हुँ मैं ।
माँ तेरे करूणा के आँछल की छाया हो साथ बस ,
कठिनाईयो,कष्टो,पराजय के लिए भी कष्ट हुँ मैं ।।

कुछ पाने की धुन मैं वक्त की कमी सी हैं ।
वह दुलार, डाँट नही अब,वक्त से ठनी सी हैं।
जब कभी करता हुँ बात माँ तुमसे फोन पर,
लगता हैं बातो में भी आजकल नमी सी हैं।

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