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Wednesday, May 22, 2019

इश्क की लहर

कही दूर अपने मन-मस्तिष्क को ले जाकर,
सोच रहा था कुछ मैं ।
अभी पहुँचा नही था मंजिल पर,
की मेरी नजरो ने मुझसे किनारा कर लिया ,
और अटक गई एक नूर से चेहरे पर जाकर ।
और एेसी अटकी नजरे मेरी ,
की पलके झपकने की इच्छा न हुई,
इच्छा तो हुई पलके बिछाने की,
उसके इंतजार में की टकते रहूँ उस लम्हे को
जब भी वो आएगी करीब मेरे,
मिलकर कुछ मीठे अल्फाज ही मुझसे कह दे ।
प्यार के नही तो कुछ और ही सही ,
बस इतना हो जाए,
फिर मैं बैचेन हो जाऊंगा उसकी यादो में ।
लेकिन क्या पता उन्हे मेरे जज्बात की कदर होगी या नही,
कदर होगी भी तो कैसै पता चलेगा मुझे ,
मान लिया की वह समझती है मुझे ,
लेकिन क्या इज्हारे इश्क भी कर देगी वह नूर,
क्योकि मुझको तो लगता है डर,
इश्क के संगीत को छेड़ने में ,
इश्क के समुन्दर में तैरने में ,
वैसे तैराक बड़ा अच्छा हूँ मैं ,
अनेको बार लहरो को भी मात दी हैं ,
लेकिन यह इश्क की लहर ही कुछ एसी है,
की डर लगता है कही गुम सा न हो जाऊ इसमें ।
डर लगना भी स्वाभाविक हैं,
क्योकि इस इश्क की लहर का अंदाजा नही हैं मुझे
और जिस किसी ने भी इस इश्क की लहर को,
ब़या किया वह मुझे गुम सा ही लगा,
या साफ शब्दो में कहु तो रोता ही पाया गया ।
कभी इस इश्क की लहर से उजड़ने पर ,
तो कभी इस इश्क की लहर के ठहर जाने पर..................


Sunday, May 12, 2019

माँ

दूर कही अपने संसार मैं ही मस्त हुँ मैं ।
कर्म,व्यथा की कथा सुनाने में व्यस्त हुँ मैं ।
जिसने मिलवाया है इस संसार से मुझे,
उस माँ के लिए ही सुर्य सा अस्त हुँ मैं ।।

राह टकती होगी माँ जानता हुँ,समय के आगे पस्त हुँ मैं।
सांसारिक मोह माया के इस जंजाल से त्रस्त हुँ मैं ।
माँ तेरे करूणा के आँछल की छाया हो साथ बस ,
कठिनाईयो,कष्टो,पराजय के लिए भी कष्ट हुँ मैं ।।

कुछ पाने की धुन मैं वक्त की कमी सी हैं ।
वह दुलार, डाँट नही अब,वक्त से ठनी सी हैं।
जब कभी करता हुँ बात माँ तुमसे फोन पर,
लगता हैं बातो में भी आजकल नमी सी हैं।