तेरे चेहरे के नूर पर कुछ इस तरह फिदा़ हुआ मैं ।
मेरी नजरे अटक गई तुम पर,आँखे भी न थकी ।।
मैने तो तेरी आँखो में अपना संसार देख लिया ।
और तुम मेरी आँखो में प्यार भी न देख सकी ।।
माना की इज्हार लब्जो से नही आँखो से किया ।
लब्जो से निकल सकता है झुठ,आँखो से नही ।।
तुम तो छिपाए बैठी हो अपने दिल के जज्बात को ।
कम से कम मैने इश्क का इज्हार किया तो सही ।।