संघर्षों से सजा हुआ, प्रयत्नो से भजा हुआ ,
मै कवच कठोर सा अस्त्र हूं।
भावों से भरा हुआ, घाव से लड़ा हुआ,
विनम्रता विजय का मै वस्त्र हूं ।।
सवालों में उलझ रहा, ज्वाल में झुलस रहा,
ये भूल क्यों गया मैं खुद ही प्रश्न हूं.....
लक्ष्य है प्रबल रहा, सूर्य सा अचल रहा ,
सारथी मैं खुद का मै ही कृष्ण हूं.......
राम सा संघर्ष हुआ , बुद्ध सा स्पर्श हुआ ,
तभी तो जीव आत्मा में खुश रहूं......
शाहस से बढ़ता हुआ, प्रभास सा चढ़ता हुआ ,
मैं दृढ़ता के साथ चलता रहूं........
वेदी सा धधक रहा, पराजय को पटक रहा ,
परिश्रम के रस का विजय गीत हूं .....
यज्ञन् ये चल रहा , वज्र भी निकल रहा ,
किंचित भी नहीं भयभीत हूं........