है छपी पुण्य गाथा जिसकी ,
वेदों के पावन पृष्ठ पर ।
क्यों समझते तुच्छ उसको ,
अपनी समझ को भ्रष्ट कर ।।
जिसने दिखाया संसार हमको ,
इस वसुधा पावन पुण्य पर।
हर वक़्त घड़ी साथ देती जो,
हम शिखर हो या शून्य पर ।।
वह मां नारी का ही तो रूप है......
प्रेम में जिसके हो मोहित ,
सुखी हो, दुखो को भूलकर ।
प्रेम बंधन में बंध गए हो,
जिसके संग तुम वेदी पर ।
वह प्रेमिका,पत्नी नारी का ही तो रूप है.......
तैयार प्राण भी त्यागने को
बहन को दिए एक वचन पर ,
क्यों दिखाते शान हम ,
उस बहन ,बेटी के ही पतन पर।
वह बहन,बेटी नारी का ही तो रूप है........
जिन देवियों को पूजते हम ,
सुख - दुखो के आगमन पर,
फिर कोख में क्यों मार देते ,
उस देवी के ही सृजन पर ।
वह देवी नारी का ही तो रूप है......
आज चिंता कर रहे हम ,
उस नारी की शशक्ति पर।
है अगणित अहसान जिसके,
इस धरा ,इस सृष्टि पर ।।
ये धरा भी नारी का ही तो रूप है.......
वेदों के पावन पृष्ठ पर ।
क्यों समझते तुच्छ उसको ,
अपनी समझ को भ्रष्ट कर ।।
जिसने दिखाया संसार हमको ,
इस वसुधा पावन पुण्य पर।
हर वक़्त घड़ी साथ देती जो,
हम शिखर हो या शून्य पर ।।
वह मां नारी का ही तो रूप है......
प्रेम में जिसके हो मोहित ,
सुखी हो, दुखो को भूलकर ।
प्रेम बंधन में बंध गए हो,
जिसके संग तुम वेदी पर ।
वह प्रेमिका,पत्नी नारी का ही तो रूप है.......
तैयार प्राण भी त्यागने को
बहन को दिए एक वचन पर ,
क्यों दिखाते शान हम ,
उस बहन ,बेटी के ही पतन पर।
वह बहन,बेटी नारी का ही तो रूप है........
जिन देवियों को पूजते हम ,
सुख - दुखो के आगमन पर,
फिर कोख में क्यों मार देते ,
उस देवी के ही सृजन पर ।
वह देवी नारी का ही तो रूप है......
आज चिंता कर रहे हम ,
उस नारी की शशक्ति पर।
है अगणित अहसान जिसके,
इस धरा ,इस सृष्टि पर ।।
ये धरा भी नारी का ही तो रूप है.......