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Wednesday, June 17, 2020

नारी का ही तो रूप है......

है छपी पुण्य गाथा जिसकी ,
वेदों के पावन पृष्ठ पर ।
क्यों समझते तुच्छ उसको ,
अपनी समझ को भ्रष्ट कर ।।

जिसने दिखाया संसार हमको ,
इस वसुधा पावन पुण्य पर।
हर वक़्त घड़ी साथ देती जो,
हम शिखर हो या शून्य पर ।।

वह मां नारी का ही तो रूप है......

प्रेम में जिसके हो मोहित ,
सुखी हो, दुखो को भूलकर ।
प्रेम बंधन में बंध गए हो,
जिसके संग तुम वेदी पर ।

वह प्रेमिका,पत्नी नारी का ही तो रूप है.......

तैयार प्राण भी त्यागने को
बहन को दिए एक वचन पर ,
क्यों दिखाते शान हम ,
उस बहन ,बेटी के ही पतन पर।

वह बहन,बेटी नारी का ही तो रूप है........

जिन देवियों को पूजते हम ,
सुख - दुखो के आगमन पर,
फिर कोख में क्यों मार देते ,
उस देवी के ही सृजन पर ।

वह देवी नारी का ही तो रूप है......

आज चिंता कर रहे हम ,
उस नारी की शशक्ति पर।
है अगणित अहसान जिसके,
इस धरा ,इस सृष्टि पर ।।

ये धरा भी नारी का ही तो रूप है.......

एक दिन वो था एक दिन ये है....

तेरा असर कुछ यूं हुआ मुझपर ,
की मेरे जाम में भी तेरे होठों का स्वाद है,
तेरी रूह की छूवन का मुझे अभी तक अहसास है ,
वो हकीकत थी या कोई हसीन सपना,
 इस सवाल में उलझ सा गया मैं,
तुझे संग में पाकर उही बेहते मेरे जज्बात है ||

एक दिन वो था एक दिन ये है....
आज भी याद है मुझे वो दिन ,
तुम पर मेरी नजरो का यूहीं अटक जाना ,
तेरे चेहरे से तेरे बालों का धीरे धीरे झटक जाना ,
तेरा खिलखिलाकर हसना, तेरे लब्जो कि शरारतें ,
मेरे दिल का तुझपर यूहीं पिघल जाना ||

हा याद है मुझे,
तुझे तकना और फिर तेरी आंखो की मस्तियां ,
तेरे लब्जो से मुलाकात का चल पड़ा था सिलसिला,
कुछ यू ही बड़ने लगी थी नजदीकियां ,
नजरो से हुआ था ये जो सिलसिला शुरू,
अब सुन रहा था मैं तेरी सांसों की सिसकियां ||

कभी टहलना संग तेरे, कभी आंखो में डूबना ,
कभी तेरे लब्जो से मुलाकात, कभी तेरी बातो को चूमना,
कभी यूहीं झूझना तेरे सवालों से ,
कभी तेरी लब्जो के तले तुझे बाहों में सोचना ||

यही सबकुछ था ,
एक दिन वो था एक दिन ये है ,
आज तू नहीं है संग मेरे बयां करू मैं किस बहाने को ,
इस महफिल में सितारे तो बहुत दिल लगाने को ,
लेकिन तुम्हारी कुछ अलग ही बात थी ,
काश तुम भी होती यह कुछ सुनने और मुझे कुछ सुनाने को||

Tuesday, June 16, 2020

उड़ रहा था मैं....

उन किरणों को समेटे,जीवन से जो मिली थी ,
ऊंचाइयों को पाने उड़ रहा था मैं ,
उन सपनों के पीछे, बचपन से थे जो सींचे ,
कोई खींच रहा या खुद ही खींचता जा रहा था मैं ||

कहीं मखमली बादल थे, कहीं डराती घटा ,
सबको गले से लगाकर बढ़ रहा था मैं ,
सपनों को लादे हुए, जीवन की इस राह में ,
ऊंचाइयों की डगर खोजता फिर रहा था मैं ||

कच्ची रस्सी के सहारे, पतली सी डगर पर ,
रस्सी टूटे, सपने जाएंगे सारे बिखर ,
उड़ने को तो फिर से मैं तैयार था ,
लेकिन रूखी सी लगने लगी थी ये डगर ||

जीवन जीने को ललचा रहा था मन ,
फिर से उड़ने को फड़फड़ा रहा था मन ,
गिरता आया हूं , गिरने से ना डरा कभी ,
लेकिन ना जाने क्यों अब घबरा रहा था मन ||

थक सा गया, रुक मैं गया हूं ,
ऊंचाइयों मैं कहीं खो गया हूं ,
जिन सपनों का पीछा किया था ,
उन सपनों को लिए सो गया हूं....... ||

Tuesday, April 7, 2020

जिंदगी में क्या बुरा?

कभी हारते- कभी जीतते चलती रहेगी जिंदगी,
कुछ सीखते - कुछ भुलते ढलती रहेगी जिंदगी ,
ढलते हुए - चलते हुए राह पर पत्थर मिले,
कुछ है लगे - कुछ है सजे,खिलती रहेगी जिंदगी ।

कुछ सीखकर गए भुल तुम , भुलो से ही सीखे हो तुम ,
कुछ नया भी अब सीख लों, कुछ भुल गए तो क्या बुरा?

कभी दौड़ते- कभी हांफते, लड़ती रहेगी जिंदगी‌‌ ,
कुछ जोश में- कुछ होश में, मिलती रहेगी जिंदगी,
लड़ते हुए - मिलते हुए, रंगमंच पर योद्धा मिले,
कुछ में सादगी - कुछ है चपल, दिखती रहेगी जिंदगी ।

कभी दौड़ते हुए रुक गए, रुकने से ही सोचोगे तुम,
जो रुककर मिला वो ना मिले, रुक भी गए तो क्या बुरा?

कभी उठते - कभी गिरते, सीखाती रहेगी जिंदगी,
कुछ खुदको - कुछ अपनों को, दिखाती रहेगी जिंदगी
सिखाते हुए - दिखाते हुए, राहों में राह मिले ,
कुछ गम - कुछ खुशी का, अहसास कराती रहेगी जिंदगी।

कभी गिरते हुए चोंटे लगी, चोंटो से है सीखे हो तुम,
अब उठ खड़े हो फिर से तुम, चोंट लगी तो क्या बुरा?

कभी रोते - कभी हंसते, मनाती रहेगी जिंदगी,
कुछ सोच - कुछ अफसोस में, डराती रहेगी जिंदगी,
डराते हुए - मनाते हुए, कभी अपने पराए मिले ,
कुछ नजदीक - कुछ दूर खड़े, बढ़ती रहेगी ज़िंदगी।

कभी सोचा था वो ना हुआ, इस सोच में बैठे हो तुम 
कुछ नया भी अब सोच लो, कुछ हो गया तो क्या बुरा?

Thursday, March 26, 2020

मैं कृष्ण हूं......


संघर्षों से सजा हुआ, प्रयत्नो से भजा हुआ ,
मै कवच कठोर सा अस्त्र हूं।
भावों से भरा हुआ, घाव से लड़ा हुआ,
विनम्रता विजय का मै वस्त्र हूं ।।

सवालों में उलझ रहा, ज्वाल में झुलस रहा,
ये भूल क्यों गया मैं खुद ही प्रश्न हूं.....
लक्ष्य है प्रबल रहा, सूर्य सा अचल रहा ,
सारथी मैं खुद का मै ही कृष्ण हूं.......

राम सा संघर्ष हुआ , बुद्ध सा स्पर्श हुआ ,
तभी तो जीव आत्मा में खुश रहूं......
शाहस से बढ़ता हुआ, प्रभास सा चढ़ता हुआ ,
मैं दृढ़ता के साथ चलता रहूं........

वेदी सा धधक रहा, पराजय को पटक रहा ,
परिश्रम के रस का विजय गीत हूं .....
यज्ञन् ये चल रहा , वज्र भी निकल रहा ,
किंचित भी नहीं भयभीत हूं........