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Sunday, July 7, 2019

मोबाइल


सुबह को जागकर पहला नमस्कार करता हुँ,
अपने मोबाइल को ,
क्योकि आजकल जगाता भी यही हैं ,
तो रूलाता-हँसाता भी यही हैं ,
बस सुलाती मेरी नींद ही है मुझे ,
नींद भी जब तक नही सुलाएगी ,
जब तक की वह अपनी चरम सीमा को
पार न करदें,
वरना इस मोबाइल के क्या ही कहने
यह सोने ही न दे मुझे ।।

मैं तो रूठता नही मोबाइल से ,
कभी मोबाईल जरूर रूठ जाता हैं ,
कभी बढ़ जाता है तापमान इसका ,
कभी आँखे बंद कर सो जाता हैं ,
तब करता हुँ जतन उसको जगाने के लिए,
और भागता हुँ बिजली की ओर ,
फिर से उसके साथ साथ कुछ गुनगुनाने के लिए ,
कुछ समझने के लिए,कुछ समझाने के लिए ,

किसी से करनी भी हो बात,
मोबाईल से ही कह देता हुँ ।
यही है दुनिया मेरी कुछ जानने,
खोजने मे यही तो एक सहारा हैं ,
कभी आन पडे़ समस्या,मोबाईल ही
की मदद से लगता किनारा हैं,
कुछ समझदार लोग कहते हैं ,
इसने बनाया-बिगाड़ा‌ हैं हमे ,
लेकिन बनाया इसे हमने ही हैं,
अपने फायदे के लिए,
ओर शायद खुद को बिगाड़ा भी,
ये मोबाइल तो बेकसुर बेचारा हैं ..........