हर रोज निकलता घर से मैं ,
एक नए सवेरे कि तलाश में ।
सवेरा, परिश्रम के केसरी रंग से रंगा ,
लक्ष्य की सुगंधित महक से सजा ।
मानो कह रहा, खुला आकाश हैं ,
उड़ जा जहा है तेरी चाह ।।
सवेरा, सुर्य सा तेज लिए ,
किरणों पर असवार होकर चले ।
मानो कह रहा, वायु की तरह ,
रुकना नही, चलना ही हैं,चलते रहे ।
सवेरा, उर्जा का करे संचार जो
त्याग सभी पराजय के तमस को,
मानो कह रहा किरणो सा स्पर्श हैं ।
संघर्ष संग लक्ष्य प्राप्त होने का।।
सवेरा, जो मेरी ही चमकदार छाया हैं ,
सफलता पर जो उभर कर आएगा ।
मानो कह रहा, खुद से ही मैं ,
प्राप्त कर लुंगा मैं सवेरे को ।।